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ब्राह्मण कौन ??

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ब्राह्मण समाज दुनिया के सबसे पुराने संप्रदाय एवं जाति में से एक है। वेदों एवं उपनिषदों के तथ्य के  अनुसार  "ब्राह्मण समाज का इतिहास" , सृष्टि के रचयिता "ब्रह्मा" से जुड़ा हुआ है। वेदों के अनुसार ऐसा बताया जाता है कि  "ब्राह्मणों की उत्पत्ति"  हिंदू धर्म के देवता "ब्रह्मा" से हुई थी। ऐसा माना जाता है कि वर्तमान समय में जितने भी ब्राह्मण समाज के लोग हैं वे सब भगवान ब्रह्मा के वंशज हैं। ब्राह्मणों का इतिहास प्राचीन भारत से भी पुराना माना जाता है, ब्राह्मण की जड़े वैदिक काल से जुड़ी हुई हैं। प्राचीन काल से ही ब्राह्मणों को समाज में उच्च स्थान प्राप्त था, उस समय ब्राह्मण जाति के लोग सबसे ज्ञानी माने जाते थे। इस जाति के लोगों को प्राचीन काल से ही उच्च एवं बड़े लोगों की श्रेणी में देखा जाता रहा है। उस दौर में धार्मिक एवं जाति मतभेद वर्तमान समय के मुकाबले चरम सीमा पर था, हिंदू धर्म के लोगों को "ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र" चार हिस्सों में बांटा गया था। इस जाति के बंटवारे में ब्राह्मण समाज के लोगों को सबसे उच्च स्थान प्र

जाती के मुट्ठी में भारतीय लोकतंत्र

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अभी कुछ दिन पहले ही उपराष्ट्रपति जी ने कहा था कि आर्थिक और तकनीकी मोर्चे पर देश को महत्वपूर्ण कामयाबी मिली है, लेकिन जाति, समुदाय और लिंग के आधार पर भेदभाव जिस तरह से बढ़े है वो सबसे बड़ी चिंता का विषय हैं। देश से जाति व्यवस्था खत्म होनी चाहिए और भारत का भविष्य जातिविहीन और वर्गविहीन होना चाहिए। उन्होंने गिरजाघरों, मस्जिदों और मंदिरों के प्रमुखों से जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव को खत्म करने के लिए काम करने को कहा है। देश कि प्रगति में बाधा है जाति की समस्या    जाति प्रथा एक सामाजिक कुरीति है। ये देश का दुर्भाग्य ही है जो देश को आजाद हुए 75 साल होने वाले है पर जाति कि सोच से बाहर नही निकल पाए है। हालांकि एक लोकतांत्रिक देश के नाते संविधान के किसी अनुच्छेद में राज्य के द्वारा धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर नागरिकों के प्रति जीवन के किसी क्षेत्र में भेदभाव नहीं किए जाने की बात कही ही गई होगी। लेकिन सरकार दोनों बातें बोलती है जहाँ एक तरफ जातिवाद को खत्म करने कि बात करते है तो दूसरी तरफ   सरकारी औहादे के लिए आवेदन या चयन की प्रक्रिया के वक्त जाति को प्रमुखता

गरम चाय की प्याली

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एक गरम चाय की प्याली हो  पीने वाली दिल वाली हो LOCKDOWN में  क्या से क्या हो गए  कल तक जो प्रोजेक्ट कोडिनेटर थे अब  टी सेलर हो गए  वक़्त वक़्त की बात है  कल भाव खाते थे अब क्या से क्या हो गए  चाय से ही अब जिंदगी चाय ही रोज़ी रोटी  पी लो सोना, पी लो मोना, जो कल चाय बेचते थे वो आज हैं PM,  हम आज बेच रहे हैं की कल कुछ होंगे, खुद भी पीजिये और, अपनों को भी पिलाएं ।। अजय टी स्टाल अपना घर,

धर्म और अधर्म

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इंसान में धर्म और अधर्म दोनों ही गुण होते हैं। कभी धर्म बढ़ता है और कभी अधर्म, कभी हम धार्मिक बर्ताव करते हैं और कभी अधार्मिक। लेकिन जब भी इंसान के अंदर अधर्म का भाव आता है, तब उसके मन में उस अधर्म को न करने की एक लहर भी ज़रूर उठती है। उस लहर को वो सुने या ना सुने या उस पर भले ही वह ध्यान दे या न दे, अधर्म करने पर दिल बार-बार यह ज़रूर कहता है कि जो कर रहे हो, वह गलत है। ये एक मन की आवाज होती है जो धर्म जरूर देता है ।  और ये भी नहीं है कि जब कुछ बड़ा अधर्म करेंगे, तभी अंदर की आवाज़ आएगी, यह तो किसी का कुछ भी गलत करने पर भी आएगी। ये आवाज़ हर वक़्त आएगी, जब भी आप कोई गलत काम करेंगे। जाहिर है, लोग इसी आवाज़ को नज़रअंदाज़ करके अधर्म करते हैं। ये अंदर की आवाज़ कुछ और नहीं, बल्कि हमारी चेतना में बैठे भगवान कृष्ण की प्रेरणा है, जो हमें अधर्म न करने की सलाह देती रहती है। पर उस चेतना को सुनता कौन है जो हो रहा है सही ही हो रहा है यही सोच धर्म और अधर्म के बीच की दूरी पैदा करता है। जो इससे पार पा गया वो धार्मिक और जो नही पार पाया वो अधार्मिक।  खैर आज के जमाने मे इतना कौन सोचता है यही बोल कर सब आगे निकल जाते

जिंदगी कठिन है, यह मानकर ही जीना चाहिए|

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  जिंदगी कठिन है। यह कठिन इसलिए है कि हम अपनी क्षमताओं को पहचानते ही नहीं। अपने आपसे रू-ब-रू नहीं होते, लक्ष्य की तलाश और तैयारी दोनों ही अधूरेपन से करते हैं। इसी कारण जीने की हर दिशा में हम औरों के मुंहताज बनते हैं, औरों का हाथ थामते हैं, उनके पदचिन्ह खोजते हैं। आखिर कब तक औरों से मांगकर उधार सपने जीते रहेंगे? कब तक औरों के साथ तुलते रहेंगे और कब तक बैशाखियों के सहारे मीलों की दूरी तय करते रहेंगे यह जानते हुए भी कि बैशाखियां सिर्फ सहारा दे सकती है, गति नहीं? मनुष्य  जीवन  में तभी ऊंचा उठता है, जब उसे स्वयं पर भरोसा हो जाए कि मैं अनंत शक्ति सम्पन्न हूं, ऊर्जा का के न्द्र हूं। अन्यथा जीवन में आधा दुःख तो हम इसलिए उठाते फिरते हैं, कि हम समझ ही नहीं पाते कि सच में हम क्या है? इसलिये जिंदगी कठिन है। हमें जिंदगी को कठिन मानते हुए ही जीना चाहिए और हमें बिना समय, भाग्य, परिस्थिति, अवसर, व्यक्ति की प्रतीक्षा किए इस कठिन जीवन के संग्राम को ‘कुछ’ कर सकने के हौंसले जीतने के लिए अग्रसर होना चाहिए।   एक महत्वपूर्ण पुस्तक ‘दि रोड लेस टेवल्ड’ के लेखक एम. स्कॉट पैक, एम.डी. कहते हैं कि ‘जिंदगी कठिन है’

जिंदगी की जद्दोजहद

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क्या ख़ता थी मेरी ए  खुदा -2 की मुझे ऐसी सजा दी है , सजा देनी ही थी तो मौत की देते, क्यों सजा में ये जद्दोजहद की ज़िंदगी दी है ! क्या कोई कमी थी मेरी साधना में आपके प्रति यदि थी तो जरा  बता देते , मैं कोशिश करता की दुबारा  ऐसी कोई  भूल ना हो मुझसे -2 पर आपने तो बिना कुछ कहे ही सजा दी है , और यदि सजा देनी ही थी तो मौत की देते , क्यों सजा में ऐसी जिंदगी दी है,, जिसका कोई मान नहीं कोई मोल नहीं ए खुदा आपने ये क्या कर दी है , क्यों सजा में ये जद्दोजहद की जिंदगी दी है ! पर मैं  हार नहीं मानूँगा मैं  -2 क्षत्रिय का रक्त है मेरे रग रग  में , चंद्रवंशी होने का गुमान है मेरे मन मे  ,कि ढूँढू गा आपको मै तबतक  जबतक प्राण है मेरे तन में और जिस दिन मिले ना आप हमे , बता दूँगा  मैं आपको की आपने कितनी बड़ी गलती की है ,  यदि आपको सजा देनी ही थी तो मौत की देते , क्यों आपने सजा में ये जद्दोजहद की जिंदगी दी है !!!!!! source

समझना आसान नहीं है यह लोकतंत्र का संदेह अलंकार जो है

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हमारे बरामदे में विराजमान होने के बाद आता है। कभी-कभी जब दरवाजा खटखटाता है तो हम उसके खटखटाने के तरीके से पहचान लेते हैं। कोई अंजान ठकठक होती है तो आदमी स्वाभाविक रूप से यही प्रश्न करता है- कौन है ? आज दरवाजे के खटखटाने से अधिक मुखर था प्रश्न- मैं कौन हूं ? आज के ज़माने में आदमी रोज मिलने वाले तक को पूरी तरह से नहीं पहचान पाता तो दरवाजे के पीछे छुपी शै को कैसे पहचाने ? जब आज तक रामविलास पासवान, जया प्रदा, अजित सिंह, अमर सिंह, हिमाचल वाले सुखराम आदि खुद को नहीं पहचान पाए कि उनका खुद का राजनीतिक दर्शन क्या है और उनकी वास्तविक राजनीतिक पार्टी कौन सी है ? कौन सा घर असली है जहां वापसी के बाद फिर आवागमन का चक्कर नहीं रहेगा। हमने सूफ़ी दर्शन वाला उत्तर दिया- जो अन्दर है, वही बाहर है। तोताराम अंदर आते हुए बोला- इस ‘मैं भी चौकीदार’ वाली मुहिम जैसे उत्तर से पार नहीं पड़ेगी। फिर भी तेरा उत्तर आंशिक रूप से सही है। बाहर भी सत्तर पार का टिकट वंचित निर्देशक मंडल का एक सदस्य और अंदर भी सत्तर पार का टिकट वंचित निर्देश मंडल का सदस्य। लेकिन मेरे कन्फ्यूजन को समझे बिना तू मेरे प्रश्न के साथ न्याय न

भारत का इतिहास

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भारत का इतिहास कई हजार वर्ष पुराना माना जाता है। मेहरगढ़ पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है जहाँ नवपाषाण युग (७००० ईसा-पूर्व से २५०० ईसा-पूर्व) के बहुत से अवशेष मिले हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता, जिसका आरम्भ काल लगभग ३३०० ईसापूर्व से माना जाता है, प्राचीन मिस्र और सुमेर सभ्यता के साथ विश्व की प्राचीनतम सभ्यता में से एक हैं। इस सभ्यता की लिपि अब तक सफलता पूर्वक पढ़ी नहीं जा सकी है। सिन्धु घाटी सभ्यता वर्तमान पाकिस्तान और उससे सटे भारतीय प्रदेशों में फैली थी। पुरातत्त्व प्रमाणों के आधार पर १९०० ईसापूर्व के आसपास इस सभ्यता का अकस्मात पतन हो गया। १९वी शताब्दी के पाश्चात्य विद्वानों के प्रचलित दृष्टिकोणों के अनुसार आर्यों का एक वर्ग भारतीय उप महाद्वीप की सीमाओं पर २००० ईसा पूर्व के आसपास पहुंचा और पहले पंजाब में बस गया और यहीं ऋग्वेद की ऋचाओं की रचना की गई। आर्यों द्वारा उत्तर तथा मध्य भारत में एक विकसित सभ्यता का निर्माण किया गया, जिसे वैदिक सभ्यता भी कहते हैं। प्राचीन भारत के इतिहास में वैदिक सभ्यता सबसे प्रारंभिक सभ्यता है जिसका सम्बन्ध आर्यों के आगमन से है। इसका नामकरण आर्यों क

Earth Day

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पांच दशक पहले 22 अप्रैल, 1970 को पहली बार पृथ्वी दिवस मनाया गया था, ताकि पर्यावरण को हो रहे नुकसान के रूप में हमारे अपने ग्रह के भविष्य को मिल रही चुनौतियों की ओर गंभीरता से ध्यान आकर्षित किया जा सके। यहां तक कि उस समय भी बेहिसाब ढंग से लैंड यूज बदले जा रहे थे, प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन, पारिस्थितिकी के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों में अतिक्रमण, वन्यजीवों के प्रति अपराध और अंधाधुंध विकास शुरू हो चुका था, जिससे पृथ्वी के सीमित संसाधनों को नुकसान पहुंचने लगा। बढ़ रहा है प्रदूषण, कचरे से भर रहे हैं समुद्र  चीन, इंडोनेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस और वियतनाम दुनिया में प्लास्टिक से सर्वाधिक प्रदूषण फैलाने वाले देशों में शुमार हैं। समुद्रों का तकरीबन एक तिहाई हिस्सा प्लास्टिक की गंदगी से अटा पड़ा है। समुद्र का पानी प्लास्टिक को विघटित कर देता है। प्लास्टिक के छोटे-छोटे कणों और अणुओं को मछलियां खा जाती हैं और इनके अंश मछलियों के शरीर में पाए गए हैं। इस तरह प्लास्टिक हमारी खाद्य शृंखला में शामिल होकर हमारी डाइनिंग टेबिल तक पहुंच जाता है। इससे मानव जीवन के लिए खतरा बढ़ता जा रहा है।  

अपराध क्यों

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समाज जिसमें व्यक्ति रहता है, समाज कहलाता है। समाज में नियम और कानून समाज व्यवस्था को चलाने के लिये अलग-अलग बनाये जाते है। बने हुए सामाजिक नियमों को तोडने को अपराध की श्रेणी में गिना जाता है। जिस समय से समाज बना है, उसी समय से उसके आदेशों के विरुद्ध काम करनेवाल भी पैदा हो गए है और जब तक मनुष्य प्रवृति ही न बदल जाए, ऐसे व्यक्ति बराबर होते रहेंगे। ध्यान रहे यह समस्या कुछ घटनाओं तक सीमित नहीं है और न ही जघन्य अपराधों तक जोकि अखबारों की सुर्खियां बन रही हैं बल्कि लड़ाकू-झगड़ालू दूसरों को तंग करना, बुलिंग आदि की शिकायतें आए दिन स्कूल परिसरों की सरदर्दी बनती जा रही हैं। हाल में दिल्ली में प्रशासनिक स्तर पर जिला विद्यालय निरीक्षक विभाग ने स्कूलों में गुस्सैल और झगड़ालू बच्चों की सूचि तैयार करने को भी कहा ताकि उनकी काउंसलिंग की जा सके तथा विशेषज्ञों की राय ली जा सके। अब कुछ बिगड़े हुए छात्रों को 6वीं और 7वीं के बाद क्लास में काबू करना शिक्षकों के लिए भारी चुनौतीपूर्ण काम बन गया है। स्कूलों में गैंग की तरह ऐसे बच्चों का समूह दूसरे बच्चों पर दबाव बनाते हैं। कुछ माता पिता को भी अपनी संतान को

शिव को प्यारा सावन क्यों

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शिव और सावन का बहुत गहरा संबंध है। ये रिश्ता आध्यात्मिक भी है, वैज्ञानिक और पौराणिक भी। सावन को स्वास्थ्य से भी जोड़ कर देखा जाता है। जब सावन में बारिश हो रही होती है तो शिवपुराण में महादेव को जल व बेलपत्र अर्पित करने का बड़ा महत्व बताया गया है।  शास्त्रों के अनुसार, जब समुद्र मंथन के समय विष निकला था तो हर तरफ हाहाकार मच गया। तब भगवान शिव ने आगे आकर विषपान किया। उस समय सावन माह था। विषपान के बाद शिव के शरीर का ताप बढ़ गया। इस ताप को शीतलता प्रदान करने के लिए मेघराज इंद्र ने बारिश की थी। इससे भगवान शिव को काफी शाति मिली। तभी से शिव जी का अभिषेक करने की परंपरा शुरू हो गई। ग्रंथों में सावन का महीना ज्ञानयोग का बताया गया है। सावन में शिव को बेलपत्र चढ़ाने का विशेष कारण है। आयुर्वेद में बेलपत्र की काफी महत्ता बताई गई है। बेल वात, पित्त और कफ को नियंत्रित करता है और पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है। इस प्रकार बेल का पेड़ श्रद्धा के दरवाजे से समाज में प्रवेश कर गया। आयुर्वेद के अनुसार, सावन में दही, छाछ, दूध व हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन वर्जित बताया गया है, क्योंकि ये शरीर में वात की समस

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