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जाती के मुट्ठी में भारतीय लोकतंत्र

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अभी कुछ दिन पहले ही उपराष्ट्रपति जी ने कहा था कि आर्थिक और तकनीकी मोर्चे पर देश को महत्वपूर्ण कामयाबी मिली है, लेकिन जाति, समुदाय और लिंग के आधार पर भेदभाव जिस तरह से बढ़े है वो सबसे बड़ी चिंता का विषय हैं। देश से जाति व्यवस्था खत्म होनी चाहिए और भारत का भविष्य जातिविहीन और वर्गविहीन होना चाहिए। उन्होंने गिरजाघरों, मस्जिदों और मंदिरों के प्रमुखों से जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव को खत्म करने के लिए काम करने को कहा है। देश कि प्रगति में बाधा है जाति की समस्या    जाति प्रथा एक सामाजिक कुरीति है। ये देश का दुर्भाग्य ही है जो देश को आजाद हुए 75 साल होने वाले है पर जाति कि सोच से बाहर नही निकल पाए है। हालांकि एक लोकतांत्रिक देश के नाते संविधान के किसी अनुच्छेद में राज्य के द्वारा धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर नागरिकों के प्रति जीवन के किसी क्षेत्र में भेदभाव नहीं किए जाने की बात कही ही गई होगी। लेकिन सरकार दोनों बातें बोलती है जहाँ एक तरफ जातिवाद को खत्म करने कि बात करते है तो दूसरी तरफ   सरकारी औहादे के लिए आवेदन या चयन की प्रक्रिया के वक्त जाति को प्रमुखता