Earth Day
पांच दशक पहले 22 अप्रैल, 1970 को पहली बार पृथ्वी दिवस मनाया गया था, ताकि पर्यावरण को हो रहे नुकसान के रूप में हमारे अपने ग्रह के भविष्य को मिल रही चुनौतियों की ओर गंभीरता से ध्यान आकर्षित किया जा सके। यहां तक कि उस समय भी बेहिसाब ढंग से लैंड यूज बदले जा रहे थे, प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन, पारिस्थितिकी के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्रों में अतिक्रमण, वन्यजीवों के प्रति अपराध और अंधाधुंध विकास शुरू हो चुका था, जिससे पृथ्वी के सीमित संसाधनों को नुकसान पहुंचने लगा।
बढ़ रहा है प्रदूषण, कचरे से भर रहे हैं समुद्र
चीन, इंडोनेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस और वियतनाम दुनिया में प्लास्टिक से सर्वाधिक प्रदूषण फैलाने वाले देशों में शुमार हैं। समुद्रों का तकरीबन एक तिहाई हिस्सा प्लास्टिक की गंदगी से अटा पड़ा है। समुद्र का पानी प्लास्टिक को विघटित कर देता है। प्लास्टिक के छोटे-छोटे कणों और अणुओं को मछलियां खा जाती हैं और इनके अंश मछलियों के शरीर में पाए गए हैं। इस तरह प्लास्टिक हमारी खाद्य शृंखला में शामिल होकर हमारी डाइनिंग टेबिल तक पहुंच जाता है। इससे मानव जीवन के लिए खतरा बढ़ता जा रहा है।
बढ़ रहा है प्रदूषण, कचरे से भर रहे हैं समुद्र
चीन, इंडोनेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस और वियतनाम दुनिया में प्लास्टिक से सर्वाधिक प्रदूषण फैलाने वाले देशों में शुमार हैं। समुद्रों का तकरीबन एक तिहाई हिस्सा प्लास्टिक की गंदगी से अटा पड़ा है। समुद्र का पानी प्लास्टिक को विघटित कर देता है। प्लास्टिक के छोटे-छोटे कणों और अणुओं को मछलियां खा जाती हैं और इनके अंश मछलियों के शरीर में पाए गए हैं। इस तरह प्लास्टिक हमारी खाद्य शृंखला में शामिल होकर हमारी डाइनिंग टेबिल तक पहुंच जाता है। इससे मानव जीवन के लिए खतरा बढ़ता जा रहा है।
प्रदूषण एक विश्वव्यापी समस्या है। इस समस्या में विश्व के सभी नगर त्रस्त हैं। विभिन्न कारणों से जल, वायु ध्वनि और मिट्टी का पारस्परिक संतुलन बिगडऩा ही प्रदूषण कहलाता है। पर्यावरण को संतुलित बनाए रखने वाले तत्वों में विकास उत्पन्न होने के कारण प्रदूषण का जन्म होता है। वास्तव में मानव द्वारा औद्योगिक वैज्ञानिक चाहत ही प्रदूषण बढ़ाने में कार्यरत है। नगरों में तेजी से विकास हो रहा है और ग्रामीण जनसंख्या का इस ओर पलायन भी हो रहा है। जिसके कारण देश में अनेग नगर महानगर बन गए हैं तथा वहां जनसंख्या का अधिक अपनी चरम सीमा को भी पास कर गया है।
देश की जनसंख्या सौ करौड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है, इसके बाद भी गति नहीं रुकी यद्यपि चीन की जसंख्या हमारे देश से अधिक है। परंतु वह दिन दूर नहीं जब हमारी जनसंख्या चीन को भी पीछे छोड़ देगी।
देश में बढ़ते नगर तथा महानगर तथा बढ़ती जनसंख्या एक गंभीर समस्या को जन्म देती है। वह समस्या है – प्रदूषण की समस्या। जनसंख्या के इस दबाव का सीधा प्रभाव वायुमंडल पर पड़ता है। इस जनसंख्या के लिए धरती कम पड़ जाती है। जिसके कारण झुज्गी-झोपडिय़ां, स्लत तथा झोपड़-पट्टियों की संख्या महानगरों में दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इन स्थाना में वायुमंडल इतना प्रदूष्ज्ञित हो जाता है कि सांस लेने के लिए स्वच्छ वायु भी नहीं मिलती। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, कानपुर जैसे अनेक नगर गंभीर रूप से प्रदूषित हैं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : यह लेखक के निजी विचार हैं.