शिव को प्यारा सावन क्यों

शिव और सावन का बहुत गहरा संबंध है। ये रिश्ता आध्यात्मिक भी है, वैज्ञानिक और पौराणिक भी। सावन को स्वास्थ्य से भी जोड़ कर देखा जाता है। जब सावन में बारिश हो रही होती है तो शिवपुराण में महादेव को जल व बेलपत्र अर्पित करने का बड़ा महत्व बताया गया है।


 शास्त्रों के अनुसार, जब समुद्र मंथन के समय विष निकला था तो हर तरफ हाहाकार मच गया। तब भगवान शिव ने आगे आकर विषपान किया। उस समय सावन माह था। विषपान के बाद शिव के शरीर का ताप बढ़ गया। इस ताप को शीतलता प्रदान करने के लिए मेघराज इंद्र ने बारिश की थी। इससे भगवान शिव को काफी शाति मिली। तभी से शिव जी का अभिषेक करने की परंपरा शुरू हो गई।

ग्रंथों में सावन का महीना ज्ञानयोग का बताया गया है। सावन में शिव को बेलपत्र चढ़ाने का विशेष कारण है। आयुर्वेद में बेलपत्र की काफी महत्ता बताई गई है। बेल वात, पित्त और कफ को नियंत्रित करता है और पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है। इस प्रकार बेल का पेड़ श्रद्धा के दरवाजे से समाज में प्रवेश कर गया। आयुर्वेद के अनुसार, सावन में दही, छाछ, दूध व हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन वर्जित बताया गया है, क्योंकि ये शरीर में वात की समस्या को बढ़ाते हैं। इसलिए इन वस्तुओं को महादेव पर अर्पित किया जाता है, क्योंकि शिव हर प्रकार के विष को ग्रहण करने वाले तत्व का प्रतीक है।

 सावन को भगवान शिव का माह मानने के पीछे एक पौराणिक कथा है। देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से अपने शरीर का त्याग कर दिया था। अपने शरीर का त्याग करने से पूर्व देवी ने महादेव को हर जन्म में पति रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी ने पार्वती नाम से हिमालय के घर में जन्म लिया और युवावस्था में सावन माह में निराहार रहकर कठोर व्रत किया। जिसके परिणामस्वरूप उन्हें भगवान शिव प्राप्त हुए। इसलिए माना जाता है कि इस माह में भगवान शिव की पूजा करने से उत्तम जीवनसाथी मिलता है।

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